Loading...
Mon - Sat 8:00 - 6:30, Sunday - CLOSED
info@maabaglamukhidarbar.com

वास्तुशास्त्र एवं दिशाएं

 

उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है। वैदिक वास्तुकला के नियमों और निर्देशों का पालन करके, वास्तुकला के कार्यक्रम में आपूर्ति और आयाम की स्थापना की जाती है, जो एक सुखी और समृद्ध आवास का सृजन करते हैं।

(1)  वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा

 

वास्तुशास्त्र में यह दिशा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सूर्य के उदय होने की दिशा है। इस दिशा के स्वामी देवता इन्द्र हैं। भवन बनाते समय इस दिशा को सबसे अधिक खुला रखना चाहिए। यह सुख और समृद्धि कारक होता है। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर भवन में रहने वाले लोग बीमार रहते हैं। परेशानी और चिन्ता बनी रहती हैं। उन्नति के मार्ग में भी बाधा आति है।

.

(2) वास्तुशास्त्र में आग्नेय दिशा

 

पूर्व और दक्षिण के मध्य की दिशा को आग्नेय दिशा कहते हैं। अग्निदेव इस दिशा के स्वामी हैं। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर का वातावरण अशांत और तनावपूर्ण रहता है। धन की हानि होती है। मानसिक परेशानी और चिन्ता बनी रहती है। यह दिशा शुभ होने पर भवन में रहने वाले उर्जावान और स्वास्थ रहते हैं। इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तु की दृष्टि से श्रेष्ठ होता है। अग्नि से सम्बन्धित सभी कार्य के लिए यह दिशा शुभ होता है।

(3) वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा

 

इस दिशा के स्वामी यम देव हैं। यह दिशा वास्तुशास्त्र में सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है। इस दिशा को खाली नहीं रखना चाहिए। दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी एवं रोजी रोजगार में परेशानी का सामना करना होता है। गृहस्वामी के निवास के लिए यह दिशा सर्वाधिक उपयुक्त होता है।

(4) वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा

 

दक्षिण और पश्चिम के मध्य की दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। इस दिशा का वास्तुदोष दुर्घटना, रोग एवं मानसिक अशांति देता है। यह आचरण एवं व्यवहार को भी दूषित करता है। भवन निर्माण करते समय इस दिशा को भारी रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी राक्षस है। यह दिशा वास्तु दोष से मुक्त होने पर भवन में रहने वाला व्यक्ति सेहतमंद रहता है एवं उसके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है।

उपदशाएं (Upadashaya) या उपदशाएँ (Upadashaya)

शब्द का प्रयोग विभिन्न संदर्भों में किया जाता है, और इसके संख्या के बारे में कुछ निश्चित जानकारी नहीं है, क्योंकि यह शब्द विभिन्न शास्त्रों, संस्कृत साहित्य और धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न रूपों में उपयोग होता है। लेकिन, यदि हम इसे वास्तु शास्त्र, धार्मिक उपदेश, या आध्यात्मिक शिक्षा के संदर्भ में देखें, तो उपदशाएं वह दिशानिर्देश और सलाह होती हैं जो किसी व्यक्ति के जीवन को सुधारने, दिशा देने और संतुलित बनाने के लिए दी जाती हैं।

वास्तु शास्त्र में उपदशाएं का एक विशिष्ट सेट होता है, जो घर, भवन और स्थान के निर्माण से संबंधित होते हैं, जबकि आध्यात्मिक या धार्मिक उपदेशों में उपदशाएं जीवन के नैतिक, मानसिक, और आत्मिक विकास के लिए होती हैं।

वायव्य दशा (Vayavya Dasha)

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के उत्तर-पश्चिम दिशा (North-West) से संबंधित होती है। इसे वायव दिशा भी कहा जाता है और यह दिशा वायु तत्व (air element) से जुड़ी होती है। इस दिशा को वायु की दिशा कहा जाता है, क्योंकि इसे वायु का और उसके ऊर्जा के प्रवाह का प्रतीक माना जाता है।

वायव्य दशा का महत्व:

  1. संचार और गतिशीलता: वायव्य दिशा में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है जो गतिशीलता, संचार और कार्यों की गति को बढ़ावा देता है। यह दिशा व्यवसाय, यात्रा, और परिवहन के संदर्भ में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
  2. समाजिक संपर्क: यह दिशा समाजिक संपर्क और रिश्तों को मजबूत करने में सहायक होती है। वायव्य दिशा में स्थित कमरे या स्थान सामाजिक और पारिवारिक संबंधों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।
  3. स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति: वायव्य दिशा का प्रभाव मानसिक शांति और संतुलन को बढ़ाता है, क्योंकि वायु तत्व मानसिक गतिविधियों और विचारों को नियंत्रित करता है।

 ईशान दशा (Ishan Dasha)

या ईशान दिशा वास्तु शास्त्र के अनुसार एक महत्वपूर्ण दिशा होती है, जो घर या भवन की उत्तरी-पूर्व दिशा (North-East) से संबंधित है। यह दिशा विशेष रूप से ईश्वर की दिशा मानी जाती है और इसमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह माना जाता है। इसे बहुत शुभ दिशा माना जाता है, क्योंकि यह ब्रह्मा, विष्णु और शिव के साथ-साथ विभिन्न देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है।

ईशान दशा के महत्व:

  1. सकारात्मक ऊर्जा: ईशान दिशा में प्राकृतिक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह दिशा घर में शांति, समृद्धि, और सुख की वृद्धि करती है।
  2. पवित्रता: इस दिशा में पूजा कक्ष (Puja Room) या मंदिर की स्थापना करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह दिशा आध्यात्मिकता, ब्रह्म और दिव्यता का प्रतीक मानी जाती है।
  3. व्यक्तिगत विकास: ईशान दिशा को जीवन के आध्यात्मिक विकास से भी जोड़ा जाता है। यह दिशा मानसिक शांति और आत्मसाक्षात्कार की दिशा में मदद करती है।

नैऋत्य दशा (Nairitya Dasha)

वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पश्चिम दिशा (South-West direction) को कहा जाता है। इसे नैऋत्य दिशा भी कहा जाता है। यह दिशा पृथ्वी तत्व (Earth Element) से जुड़ी होती है और इस दिशा का संबंध स्थिरता, ताकत, सुरक्षा और पारिवारिक संबंधों से होता है।

नैऋत्य दशा का महत्व:

  1. स्थिरता और सुरक्षा: नैऋत्य दिशा स्थिरता, सुरक्षा और मानसिक शांति का प्रतीक मानी जाती है। यह दिशा घर या भवन में मजबूती और संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
  2. दक्षिण-पश्चिम दिशा का प्रभाव: इस दिशा का प्रभाव पारिवारिक जीवन और व्यक्तिगत संबंधों पर पड़ता है। इसे घर के मालिक या प्रमुख व्यक्ति के कक्ष के लिए आदर्श माना जाता है, क्योंकि यह दिशा उनके जीवन में शक्ति, नियंत्रण और समृद्धि ला सकती है।
  3. व्यक्तिगत और पारिवारिक समृद्धि: यह दिशा धन, संपत्ति और पारिवारिक सुख-शांति के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। घर के स्वामी के लिए इस दिशा में शयनकक्ष का होना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

आनेय दशा (Aagneya Dasha)

या आग्नेय दिशा (Agneya Dasha) वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पूर्व दिशा (South-East direction) को कहा जाता है। इसे आग्नेय दिशा भी कहा जाता है, क्योंकि यह अग्नि तत्व (Fire Element) से संबंधित है। यह दिशा शक्ति, ऊर्जा, उत्साह और संपत्ति का प्रतीक मानी जाती है।

आग्नेय दिशा का महत्व:

  1. अग्नि तत्व: आग्नेय दिशा का संबंध अग्नि (Fire) से है, जो ऊर्जा, शक्ति, प्रेरणा और गतिशीलता का प्रतीक है। यह दिशा कार्यों में तेजी लाने, उत्साह बढ़ाने और सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद करती है।

  2. व्यवसाय और धन: आग्नेय दिशा व्यवसाय, समृद्धि और संपत्ति से जुड़ी होती है। यह दिशा धन और सफलता के लिए लाभकारी मानी जाती है। घर या ऑफिस में रसोई (किचन) इस दिशा में हो, तो यह शुभ माना जाता है क्योंकि रसोई में अग्नि तत्व होता है और यह घर में समृद्धि और खुशी लाता है।

  3. शक्ति और प्रेरणा: आग्नेय दिशा व्यक्ति को ऊर्जा, शक्ति, और प्रेरणा प्रदान करती है। यह दिशा किसी भी परियोजना या कार्य के लिए आवश्यक ऊर्जा और गति प्रदान करती है।

आकाश दिशा (Aakash Disha)

वास्तु शास्त्र में एक विशेष दिशा नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक और ऊर्जा संबंधी संदर्भों में उपयोग होता है। आकाश (Sky) को पंच महाभूतों में से एक तत्व माना जाता है, जो सभी जीवों और ब्रह्मांड के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। इसे आकांश या आकाश तत्व कहा जाता है और यह स्पेस या वैक्यूम का प्रतीक है। हालांकि, वास्तु शास्त्र में आकाश दिशा का कोई सटीक उल्लेख नहीं है, लेकिन इसे ऊपर की दिशा या ऊर्ध्व दिशा के रूप में माना जा सकता है।

आकाश का महत्व:

आकाश को एक अत्यधिक शुद्ध और व्यापक तत्व माना जाता है, जो अन्य सभी तत्वों से बड़ा और असीम होता है। यह ब्रह्मांड और जीवन के अस्तित्व का आधार है। वास्तु शास्त्र में आकाश का प्रभाव उस घर या स्थान पर शांति, दिव्यता, और ऊर्जावान वातावरण को बनाए रखने में मदद करता है।

पाताल दिशा (Paatal Disha)

या पाताल लोक वास्तु शास्त्र में एक विशिष्ट दिशा के रूप में नहीं मानी जाती है, क्योंकि पाताल शब्द का प्रचलन धार्मिक और शास्त्रीय संदर्भों में मुख्य रूप से होता है। पाताल को हिंदू धर्म में पाताल लोक के रूप में जाना जाता है, जो कि पृथ्वी के नीचे स्थित एक काल्पनिक और आध्यात्मिक स्थान है। इसे अक्सर निचली, अंधकारमय और असुरों का निवास स्थान माना जाता है।

हालांकि, वास्तु शास्त्र में सीधे तौर पर “पाताल दिशा” का उल्लेख नहीं है, लेकिन इसे कुछ विशेष संदर्भों में नकारात्मक दिशा या स्थान के रूप में समझा जा सकता है, जैसे कि जो स्थान या दिशा घर के नीचे या निचले स्तर पर स्थित होती है। 

×