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यहां कुछ Vastu शास्त्र के नियम दिए गए हैं, जिन्हें आप अपने घर में सकारात्मक ऊर्जा और शांति लाने के लिए अपना सकते हैं:

प्रवेश द्वार के लिए Vastu:

  1. प्रवेश द्वार की दिशा: यदि घर पश्चिममुखी है तो प्रवेश द्वार उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए, और यदि घर दक्षिणमुखी है तो प्रवेश द्वार दक्षिण-पूर्व दिशा में होना चाहिए।

  2. द्वार का रंग: काले रंग का प्रयोग प्रवेश द्वार पर नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसे नकारात्मक भावनाओं से जोड़ा जाता है। इसके बजाय, एम्बर या लकड़ी के रंगों का चयन करें जो स्थिरता और पृथ्वी के तत्व को दर्शाते हैं। एक श्वेत प्रवेश द्वार भी अच्छा होता है, जो शांति का प्रतीक होता है।

  3. प्रवेश द्वार के पास चीजें: जूते की रैक, पुरानी फर्नीचर और कचरा डालने की जगह प्रवेश द्वार के पास नहीं रखनी चाहिए।

  4. प्रकाश: मुख्य दरवाजे को पर्याप्त सूरज की रोशनी मिलनी चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो, तो पीले रंग की बत्तियाँ लगाकर प्रवेश द्वार को रोशन करें।

  5. नाम प्लेट: नाम प्लेट लगाना Vastu के हिसाब से शुभ माना जाता है। उत्तर या पश्चिम दिशा के द्वार के लिए धातु की नाम प्लेट बेहतर रहती है, जबकि दक्षिण या पूर्व दिशा के प्रवेश द्वार के लिए उत्कीर्ण लकड़ी की नाम प्लेट आदर्श है।

  6. दरवाजे की घंटी: दरवाजे की घंटी का स्वर हमेशा मधुर और शांतिपूर्ण होना चाहिए, तेज और कर्कश आवाज से बचें।

  7. अंधेरे या गंदे प्रवेश द्वार से बचें: अंधेरे, गंदे प्रवेश द्वार से नकारात्मक वातावरण पैदा हो सकता है। इसलिए, प्रवेश द्वार को हल्की और सुकून देने वाली रोशनी से सजाएं।

  8. टूटे-फूटे दरवाजे: टूटे-फूटे दरवाजे वित्तीय स्थिति और परिवार के कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसे दरवाजों को तुरंत बदलना चाहिए।

  9. आर्च वाला लकड़ी का दरवाजा: आर्च वाला लकड़ी का दरवाजा घर की सुंदरता को बढ़ाता है और इसे शुभ माना जाता है, विशेष रूप से लकड़ी के हैंडल के साथ।

  10. थ्रेसहोल्ड (सीमा): प्रवेश द्वार के बाहर थोड़ा ऊंचा थ्रेसहोल्ड होना चाहिए, जो नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्रदान करता है।

लिविंग रूम के लिए Vastu:

  1. लिविंग रूम की दिशा: घर में ऊर्जा का प्रवाह लिविंग रूम से शुरू होता है, जो उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए।

  2. भारी फर्नीचर का स्थान: सोफा या शेल्फ जैसे भारी फर्नीचर को पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखें। टीवी या साउंड सिस्टम जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लिविंग रूम के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में रखें।

  3. खुला फ्लोर प्लान: यदि आपके पास लिविंग और डाइनिंग रूम का संयुक्त प्लान है, तो डाइनिंग क्षेत्र को पूर्व दिशा में रखना चाहिए।

  4. रंगों का चयन: हल्के रंग जैसे क्रीम, बेज या सफेद रंग घर में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं।

  5. स्फूर्तिदायक रंग: डाइनिंग क्षेत्र को खुशमिजाज और उत्साही बनाने के लिए हल्का पीला, केसरिया या आड़ू रंग अच्छे होते हैं।

  6. टूटे हुए सामान से बचें: यदि शोकेस या दीवार पर लगे फोटो फ्रेम, शोपीस या दर्पण टूटे हुए हैं, तो उन्हें तुरंत हटा दें, क्योंकि ऐसे वस्त्रों को नकारात्मकता लाने वाला माना जाता है।

किचन के लिए Vastu:

  1. किचन की दिशा: किचन को हमेशा दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए, क्योंकि यहां अग्नि तत्व होता है।

  2. रसोई उपकरणों का स्थान: गैस स्टोव, सिलेंडर और अन्य उपकरणों को किचन के दक्षिण-पूर्व कोने में रखना चाहिए।

  3. सिंक और कुकिंग रेंज का स्थान: किचन में सिंक और कुकिंग रेंज को एक ही प्लेटफार्म पर नहीं रखना चाहिए। इन्हें अलग-अलग जगह पर रखें।

  4. अन्न भंडारण: अन्न को किचन के दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना शुभ होता है।

बेडरूम के लिए Vastu:

  1. मास्टर बेडरूम: मास्टर बेडरूम को घर के दक्षिण-पश्चिम कोने में रखना सबसे अच्छा होता है। बच्चों का या अतिथि का बेडरूम उत्तर-पश्चिम में हो सकता है।

  2. विंडो का स्थान: अधिकतर खिड़कियां पूर्व और उत्तर दीवारों पर होनी चाहिए।

  3. सोने की दिशा: सोते समय सिर का सिरा दक्षिण या पूर्व दिशा में होना चाहिए, जबकि पैरों का सिरा पश्चिम या उत्तर दिशा में होना चाहिए।

बाथरूम के लिए Vastu:

  1. बाथरूम की दिशा: बाथरूम को घर के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में बनवाना आदर्श है।

  2. धातु के दरवाजे से बचें: बाथरूम के लिए धातु के दरवाजों का इस्तेमाल न करें। लकड़ी के दरवाजे अधिक शुभ होते हैं।

  3. टॉयलेट का स्थान: बाथरूम का टॉयलेट बेडरूम, किचन या पूजा कक्ष से सटा हुआ नहीं होना चाहिए।

  4. वाश बेसिन और शावर का स्थान: वाश बेसिन और शावर को बाथरूम के पूर्व या उत्तर-पूर्व क्षेत्र में रखना चाहिए।

  5. बाथरूम की खिड़की: बाथरूम की खिड़की को पूर्व दिशा में रखें, जिससे ताजगी और सूर्य की रोशनी प्राप्त हो सके।

निष्कर्ष:

इन Vastu टिप्स को अपनाकर आप अपने घर को शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा से भर सकते हैं।

 

वास्तु शास्त्र में विभिन्न प्रकार के प्लॉट्स के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश होते हैं, 

1. वर्गाकार प्लॉट (चतुर्भुज आकार)

  • आकार: वर्गाकार प्लॉट सबसे शुभ और आदर्श माने जाते हैं।
  • वास्तु सिफारिश: वर्गाकार प्लॉट संतुलन, स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ावा देते हैं। इसके चारों ओर की दीवारें समान आकार की होनी चाहिए ताकि प्राकृतिक तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु) संतुलित रहें।
  • दिशा: सभी दिशाओं का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन घर का निर्माण सबसे उपयुक्त दिशाओं में किया जाना चाहिए।

2. आयताकार प्लॉट (आयताकार आकार)

  • आकार: आयताकार प्लॉट भी वास्तु के अनुसार अच्छे होते हैं, लेकिन ऊर्जा के प्रवाह को अधिकतम करने के लिए कुछ दिशानिर्देश होते हैं।
  • वास्तु सिफारिश: इस प्रकार के प्लॉट का लंबा हिस्सा उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए, और छोटा हिस्सा दक्षिण या पश्चिम दिशा में।
  • दिशा: घर का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए।

3. त्रिकोणीय प्लॉट (त्रिकोण आकार)

  • आकार: त्रिकोणीय प्लॉट को वास्तु में अशुभ माना जाता है क्योंकि ये ऊर्जा के प्रवाह में असंतुलन पैदा करते हैं और निर्माण में समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं।
  • वास्तु सिफारिश: त्रिकोणीय प्लॉट से बचने की कोशिश करें। यदि यह संभव न हो, तो ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करने के लिए प्लॉट के आकार को सही तरीके से विभाजित करें।
  • दिशा: निर्माण के लिए उत्तर या पूर्व दिशा में प्रवेश द्वार सुनिश्चित करें।

4. वृत्ताकार प्लॉट (वृत्ताकार आकार)

  • आकार: वृत्ताकार प्लॉट आम तौर पर वास्तु में शुभ नहीं माने जाते हैं क्योंकि ये ऊर्जा के प्रवाह में असामान्यता पैदा कर सकते हैं। हालांकि, इस प्रकार के प्लॉट का उपयोग सावधानी से किया जा सकता है।
  • वास्तु सिफारिश: वृत्ताकार प्लॉट को भागों में बांटकर संतुलन और समरूपता सुनिश्चित करने के लिए वास्तु सलाहकार से मार्गदर्शन लें।
  • दिशा: इस प्रकार के प्लॉट में मुख्य प्रवेश द्वार दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं होना चाहिए। उत्तर या पूर्व दिशा में प्रवेश द्वार आदर्श है।

5. असामान्य आकार का प्लॉट (असामान्य या अजीब आकार)

  • आकार: असामान्य आकार के प्लॉट्स, जैसे पेंटागन, हेक्सागन आदि, वास्तु में अशुभ माने जाते हैं।
  • वास्तु सिफारिश: इन प्लॉट्स को सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह में असंतुलन पैदा कर सकते हैं, इसलिए इनसे बचने की कोशिश करें। हालांकि, यदि ऐसा प्लॉट है तो उसे ठीक करने के लिए वास्तु उपायों का पालन करें।
  • दिशा: असामान्य प्लॉट्स में प्रवेश द्वार को उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में रखें।

6. एल-आकृति प्लॉट (एल आकार)

  • आकार: एल-आकृति प्लॉट वास्तु में शुभ नहीं माने जाते क्योंकि ये असंतुलित ऊर्जा के प्रवाह को उत्पन्न कर सकते हैं और परिवार के सदस्यों के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं।
  • वास्तु सिफारिश: एल-आकृति प्लॉट को टालने की कोशिश करें। यदि ऐसा प्लॉट है, तो इसके प्रभाव को कम करने के लिए प्लॉट को सही दिशा में बढ़ा कर आकार को सामान्य बनाएं।
  • दिशा: उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवेश द्वार बनवाने की कोशिश करें।

7. यू-आकृति प्लॉट (यू आकार)

  • आकार: यू-आकृति प्लॉट भी वास्तु में अशुभ माने जाते हैं क्योंकि वे असमान ऊर्जा वितरण उत्पन्न करते हैं।
  • वास्तु सिफारिश: इन प्लॉट्स का उपयोग सावधानी से करें और यू-आकृति को कम करने के उपाय करें। इसे सामान्य आकार में बदलने के लिए वास्तु उपायों का पालन करें।
  • दिशा: उत्तर-पूर्व दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार होना चाहिए।

8. पैन-आकृति प्लॉट

  • आकार: पैन आकार या वक्राकार प्लॉट भी वास्तु में शुभ नहीं माने जाते हैं, क्योंकि ये ऊर्जा के असमान प्रवाह को उत्पन्न कर सकते हैं।
  • वास्तु सिफारिश: इस आकार से बचने की कोशिश करें, या इसे सही दिशा में संतुलित करने के लिए उचित वास्तु उपायों का पालन करें।
  • दिशा: उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार रखें।

9. झुकी हुई (स्लोपिंग) प्लॉट

  • आकार: झुकी हुई (स्लोपिंग) प्लॉट्स का उपयोग दिशा के आधार पर शुभ हो सकता है। यदि प्लॉट उत्तर या पूर्व दिशा में झुका हो तो यह शुभ माना जाता है, जबकि दक्षिण या पश्चिम दिशा में झुकी हुई प्लॉट्स को बचने की कोशिश करें।
  • वास्तु सिफारिश: सुनिश्चित करें कि झुकी हुई भूमि बहुत तेज न हो और घर को उच्च स्थान पर बनाएं ताकि नकारात्मक प्रभाव से बच सकें। मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में हो तो यह अच्छा है।
  • दिशा: उत्तर-पूर्व, पूर्व या उत्तर दिशा में झुकी हुई प्लॉट्स आदर्श होते हैं।

वास्तु शास्त्र के अनुसार प्लॉट चयन के सामान्य सिद्धांत

  1. आदर्श प्लॉट आकार: वर्गाकार या आयताकार प्लॉट सबसे शुभ माने जाते हैं क्योंकि ये प्राकृतिक तत्वों के संतुलन को बनाए रखते हैं।

  2. प्रोक्ष और कटाव से बचें: जो प्लॉट किसी दिशा में कटे हुए हों या जिनमें कोण हो, उन्हें वास्तु में अशुभ माना जाता है। इनसे बचने की कोशिश करें।

  3. ढलान और ऊँचाई: उत्तर या पूर्व दिशा में ढलान वाले प्लॉट आदर्श होते हैं क्योंकि ये सकारात्मक ऊर्जा को आसानी से अंदर लाने में मदद करते हैं।

  4. आकार और आकार की समानता: प्लॉट का आकार समान और नियमित होना चाहिए, ताकि ऊर्जा का प्रवाह सही तरीके से हो सके। असमान आकार के प्लॉट्स से बचना चाहिए।

  5. तत्वों का संतुलन: वास्तु के अनुसार, घर और कमरों का स्थान सही दिशा में और संतुलित होना चाहिए, ताकि पांचों तत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—का संतुलन बने।


निष्कर्ष

वास्तु शास्त्र के अनुसार, प्लॉट का आकार और दिशा घर की ऊर्जा के प्रवाह को बहुत प्रभावित करते हैं। सबसे शुभ प्लॉट्स वर्गाकार और आयताकार होते हैं, जबकि असामान्य आकार के प्लॉट्स में असंतुलन हो सकता है, जिन्हें वास्तु उपायों के माध्यम से सुधारने की आवश्यकता होती है। अगर आपके पास जटिल आकार का प्लॉट हो, तो वास्तु विशेषज्ञ से सलाह लेकर उसे सही दिशा और उपायों के साथ संतुलित किया जा सकता है।

वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार (main gate) 

1. उत्तर दिशा में मुख्य द्वार (North Entrance)

  • वास्तु सिफारिश: उत्तर दिशा को धन, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा हुआ माना जाता है। यदि मुख्य द्वार उत्तर दिशा में है, तो यह आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है।
  • वास्तु लाभ: यह दिशा वाणिज्यिक गतिविधियों और समृद्धि के लिए बहुत लाभकारी होती है। व्यापार या व्यवसाय से जुड़े लोग इस दिशा को प्राथमिकता दे सकते हैं।
  • मुख्य टिप: इस दिशा में द्वार के पास किसी प्रकार की रुकावट नहीं होनी चाहिए, ताकि ऊर्जा का प्रवाह आसानी से हो सके।

2. पूर्व दिशा में मुख्य द्वार (East Entrance)

  • वास्तु सिफारिश: पूर्व दिशा को सूर्योदय और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इसे शुभ दिशा माना जाता है, क्योंकि सूरज की रोशनी इस दिशा से घर में प्रवेश करती है, जो सकारात्मक ऊर्जा और जीवन शक्ति को बढ़ाती है।
  • वास्तु लाभ: इस दिशा में द्वार होने से घर में शांति, समृद्धि और मानसिक संतुलन बना रहता है।
  • मुख्य टिप: यदि आपके घर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में है, तो इसे सजाने और साफ रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।

3. उत्तर-पूर्व दिशा में मुख्य द्वार (North-East Entrance)

  • वास्तु सिफारिश: उत्तर-पूर्व दिशा को “ईशान कोण” कहा जाता है, जो घर के लिए सबसे शुभ माना जाता है। इस दिशा में मुख्य द्वार होने से घर में अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और यह स्वास्थ्य, धन और खुशी में वृद्धि करता है।
  • वास्तु लाभ: यह दिशा घर के निवासियों के मानसिक शांति और समृद्धि के लिए अत्यंत लाभकारी होती है।
  • मुख्य टिप: उत्तर-पूर्व में मुख्य द्वार होना सबसे अच्छा होता है, लेकिन इस दिशा में द्वार खुलने के समय सूर्य की रोशनी का ध्यान रखना चाहिए।

4. दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार (South Entrance)

  • वास्तु सिफारिश: दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार वास्तु शास्त्र के अनुसार थोड़ा असुभ माना जाता है। हालांकि, अगर इस दिशा में मुख्य द्वार है, तो इसे सावधानी से सजाना और सही दिशा में रखकर इसे शुभ बनाने की कोशिश करें।
  • वास्तु लाभ: इस दिशा में मुख्य द्वार होने से घरेलू सुख और समृद्धि में कमी आ सकती है, लेकिन सही उपायों से इसे सुधारा जा सकता है।
  • मुख्य टिप: दक्षिण दिशा में द्वार के पास कोई भारी वस्तु या अंधेरा नहीं होना चाहिए। दरवाजे पर कभी भी बुरी प्रतीकों का इस्तेमाल न करें।

5. दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार (South-West Entrance)

  • वास्तु सिफारिश: दक्षिण-पश्चिम दिशा को वास्तु में शुभ नहीं माना जाता है, क्योंकि यह दिशा स्थिरता और सुरक्षा के लिए होती है, और यदि मुख्य द्वार इस दिशा में हो, तो यह घर के लिए नकारात्मक परिणाम दे सकता है।
  • वास्तु लाभ: इस दिशा में मुख्य द्वार से घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर सकती है, जिससे घर में कलेश और तनाव बढ़ सकता है।
  • मुख्य टिप: इस दिशा में मुख्य द्वार होने पर उसे सजाने के लिए वास्तु विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए, ताकि नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

6. पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार (West Entrance)

  • वास्तु सिफारिश: पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह दिशा सूर्यास्त और जीवन के अनुभवों का प्रतीक होती है। यह दिशा घर के निवासियों को मानसिक शांति और संतुलन देती है।
  • वास्तु लाभ: इस दिशा में द्वार होने से घर में सफलता और समृद्धि की संभावना बढ़ती है।
  • मुख्य टिप: इस दिशा में द्वार होना शुभ है, लेकिन इसे भी सकारात्मक रूप से सजाना चाहिए ताकि कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

7. दक्षिण-पूर्व दिशा में मुख्य द्वार (South-East Entrance)

  • वास्तु सिफारिश: दक्षिण-पूर्व दिशा को “अग्नि कोण” कहा जाता है और इसे आग के तत्व से जुड़ा हुआ माना जाता है। इस दिशा में मुख्य द्वार घर में शांति और स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है, बशर्ते इसे सही दिशा में रखा जाए।
  • वास्तु लाभ: यह दिशा व्यापार और वित्तीय मामलों के लिए लाभकारी होती है।
  • मुख्य टिप: इस दिशा में द्वार होने पर, घर में अग्नि तत्व (जैसे रसोई) के प्रभाव को सकारात्मक रूप से उपयोग करें।

8. उत्तर-पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार (North-West Entrance)

  • वास्तु सिफारिश: उत्तर-पश्चिम दिशा को “वायु कोण” कहा जाता है, और यह दिशा घर में वायु और जीवन शक्ति के प्रवाह को बढ़ाती है। यहां मुख्य द्वार होने से घर में ताजगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
  • वास्तु लाभ: यह दिशा यात्रा, व्यवसाय और स्वास्थ्य के लिए शुभ मानी जाती है।
  • मुख्य टिप: इस दिशा में द्वार रखने से घर में सुख और समृद्धि की वृद्धि होती है।

मुख्य द्वार के लिए सामान्य वास्तु टिप्स:

  1. मुख्य द्वार का आकार और डिजाइन:

    • मुख्य द्वार हमेशा चौड़ा और ऊँचा होना चाहिए ताकि ऊर्जा का प्रवाह आसानी से हो सके।
    • द्वार को साफ और स्वच्छ रखना चाहिए। टूटी-फूटी या खराब दरवाजे न हों।
  2. मुख्य द्वार की सजावट:

    • मुख्य द्वार पर शुभ प्रतीकों का उपयोग करें, जैसे स्वास्तिक, ओम, या शुभलक्ष्मी के चिन्ह।
    • दीपक या शंख का उपयोग द्वार के पास शुभता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
  3. मुख्य द्वार पर सुरक्षा:

    • मुख्य द्वार पर सुरक्षा के उपाय जैसे मजबूत ताले और लॉक रखें।
    • द्वार के पास कोई बाधा या रुकावट नहीं होनी चाहिए, ताकि ऊर्जा का प्रवाह न रुके।
  4. मुख्य द्वार की दिशा:

    • मुख्य द्वार कभी भी दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम दिशा में नहीं होना चाहिए, क्योंकि ये नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश बढ़ाते हैं।

वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार के स्थान का चुनाव करते समय इन दिशा-निर्देशों का पालन करके आप घर में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर सकते हैं, जो घर में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करती है।

वास्तु शास्त्र में छत (Roof) 

वास्तु शास्त्र के अनुसार छत के निर्माण से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं:

1. छत की संरचना और आकार

  • समान आकार की छत: वास्तु के अनुसार, छत का आकार सममित होना चाहिए। यह घर की संपूर्ण ऊर्जा के संतुलन में मदद करता है। अजीब और असममित आकार की छत से घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सकता है।
  • चपटी छत (Flat Roof): चपटी छत को वास्तु शास्त्र में सही माना जाता है, लेकिन इसका ध्यान रखना चाहिए कि इसका निर्माण अच्छी सामग्री से और सही तरीके से किया गया हो। चपटी छत घर की ऊर्जा को स्थिर रखती है।
  • तीरछी छत (Sloping Roof): तीरछी छत का निर्माण विशेष रूप से उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में किया जाना चाहिए। यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती है और घर में सुख-शांति बनाए रखती है।

2. छत पर कोई बड़ा अंधेरा स्थान या रुकावट नहीं होनी चाहिए

  • छत पर किसी भी प्रकार का अंधेरा स्थान, टूटी हुई जगह या छत के लिए कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए। ऐसे स्थानों से नकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सकता है, जिससे घर में समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • निर्माण के दौरान: छत को साफ, खाली और मजबूत होना चाहिए। किसी भी प्रकार की छत की दरार या टूट-फूट घर की समृद्धि और सुख को प्रभावित कर सकती है।

3. ऊपर की छत (Top Floor) का निर्माण

  • यदि घर में कई मंजिलें हैं, तो सबसे ऊपरी मंजिल की छत का निर्माण सही तरीके से और मजबूत होना चाहिए। अगर सबसे ऊपर की छत कमजोर होती है या उसमें दरारें होती हैं, तो यह पूरी संरचना को प्रभावित कर सकता है और घर में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
  • सार्वजनिक स्थान से छत का संबंध: यह सुनिश्चित करें कि छत पर कोई सार्वजनिक स्थान जैसे बाजार या सड़क का असर न हो। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हो सकता है।

4. छत पर कोई भारी वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए

  • वास्तु शास्त्र में यह कहा गया है कि छत पर भारी सामान नहीं रखना चाहिए, जैसे पुराने बर्तन, कबाड़, या भारी सामान। यह घर में स्थिरता और संतुलन को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • छत पर वृक्ष या पौधे: छत पर पेड़-पौधे लगाना अच्छा होता है, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि पेड़ बहुत बड़े या भारी न हों।

5. छत का रंग

  • छत के रंग को हल्का और सौम्य रखना चाहिए। सफेद, हल्का नीला या हल्का हरा रंग छत के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। गहरे रंगों से बचना चाहिए, क्योंकि ये नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।

6. वेंटिलेशन और प्रकाश

  • छत के निर्माण में यह सुनिश्चित करें कि उचित वेंटिलेशन हो, ताकि ताजगी और प्राकृतिक हवा घर के अंदर आती रहे। वेंटिलेशन से घर में ताजगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।
  • छत में पर्याप्त प्राकृतिक प्रकाश का प्रवेश होना चाहिए, जिससे घर में उजाला और शुद्ध ऊर्जा बनी रहे। यदि प्राकृतिक प्रकाश का प्रवाह कम है, तो कृत्रिम प्रकाश का उपयोग किया जा सकता है, जैसे छत पर हल्की एलईडी लाइट्स लगाना।

7. छत पर पानी का संग्रहण

  • छत से बारिश का पानी सही जगह पर संग्रहित किया जाना चाहिए, और इसके निकासी का रास्ता सही होना चाहिए। अगर पानी का संचय कहीं रुक जाता है, तो वह नकारात्मक ऊर्जा का कारण बन सकता है।
  • वास्तु टिप: पानी का निकासी दक्षिण-पूर्व दिशा में बेहतर माना जाता है। यह घर की समृद्धि और विकास को बढ़ावा देता है।

8. छत में किसी भी प्रकार के दाग-धब्बे या नुकसान से बचें

  • छत पर किसी भी प्रकार का दाग-धब्बा, जैसे कि तेल के धब्बे या गंदगी, घर में नकारात्मक ऊर्जा ला सकते हैं। छत को हमेशा साफ और स्वच्छ रखें, ताकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे।

वास्तु के अनुसार छत से जुड़े कुछ और महत्वपूर्ण टिप्स:

  1. छत पर सीढ़ियाँ न हो: वास्तु के अनुसार, यदि घर की छत पर सीढ़ियाँ हैं, तो यह घर में नकारात्मक ऊर्जा का कारण बन सकता है। इसे ठीक से डिजाइन करें और सुनिश्चित करें कि सीढ़ियाँ घर की सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह में बाधा न डालें।

  2. द्वार की स्थिति: अगर छत पर कोई द्वार है, तो उसकी दिशा का भी ध्यान रखें। यह द्वार मुख्य द्वार के साथ मेल खाता होना चाहिए, ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो सके।

  3. पानी की टंकी की स्थिति: अगर छत पर पानी की टंकी रखी जाती है, तो उसे उत्तर-पश्चिम या पश्चिम दिशा में रखना सबसे अच्छा होता है। इससे घर में पानी की ऊर्जा सही दिशा में प्रवाहित होती है और यह घर में स्थिरता बनाए रखता है।

निष्कर्ष:

वास्तु शास्त्र के अनुसार छत का निर्माण और डिज़ाइन घर में ऊर्जा के संतुलन और प्रवाह के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। एक सही दिशा, आकार और उचित देखभाल से छत न केवल घर की संरचना को सुरक्षित रखती है, बल्कि यह घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख, शांति का वातावरण भी सुनिश्चित करती है।

वास्तु शास्त्र में पूजा घर (Pooja Ghar) का स्थान 

पूजा घर के लिए वास्तु के अनुसार महत्वपूर्ण दिशा और स्थान

  1. पूजा घर की दिशा:

    • उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण): पूजा घर के लिए सबसे शुभ दिशा उत्तर-पूर्व है। इसे ईशान कोण भी कहा जाता है। यहां पर पूजा स्थल रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। यह दिशा घर के अंदर शांति और समृद्धि का कारण बनती है।
    • पूर्व दिशा: यदि उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा घर नहीं बनाया जा सकता, तो आप पूर्व दिशा में भी पूजा घर बना सकते हैं। यह भी सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है।
    • उत्तर दिशा: पूजा घर उत्तर दिशा में भी बनाया जा सकता है, क्योंकि यह दिशा भी समृद्धि और शांति का प्रतीक मानी जाती है।
  2. पूजा घर का स्थान:

    • पूजा घर को घर के अंदर ऐसे स्थान पर रखना चाहिए, जो शांत और असुरक्षित हो। पूजा घर को किसी व्यस्त स्थान या मुख्य द्वार के पास नहीं बनाना चाहिए।
    • उत्तर-पूर्व कोने में (ईशान कोण) सबसे अच्छा स्थान है, क्योंकि यह स्थान सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ावा देता है।
    • पूजा घर को घर के केंद्र में नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि यह घर के ऊर्जा संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
  3. पूजा घर का आकार:

    • पूजा घर का आकार न बहुत बड़ा होना चाहिए, न बहुत छोटा। इसे एक सामान्य और संतुलित आकार में रखना चाहिए।
    • पूजा घर में हल्का और खुला स्थान होना चाहिए, जिससे पूजा के दौरान सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो सके।
    • सीमित स्थान में पूजा घर रखें, ताकि आप अपनी पूजा को शांति से और ध्यानपूर्वक कर सकें।

पूजा घर के अंदर क्या रखें और क्या न रखें

  1. आवश्यक वस्तुएं:
    • मूर्ति/चित्र: पूजा घर में भगवान की मूर्तियाँ या चित्र रखें, लेकिन यह ध्यान रखें कि मूर्तियाँ या चित्र हमेशा साफ और सही आकार के हों।
    • दीपक/अगरबत्ती: पूजा के दौरान दीपक और अगरबत्तियाँ जलाना अच्छा होता है, जिससे वातावरण में शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
    • सिद्धि वाद्य: घंटी, शंख, और ताम्र पात्र आदि पूजा सामग्री में शामिल हो सकते हैं, जो पूजा के वातावरण को शुद्ध और मंगलकारी बनाते हैं।
    • पवित्र वस्तुएं: तुलसी का पौधा, शंख, और धूपदानी जैसे पवित्र और शुभ वस्त्र रखें। यह शुभता और ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
  2. न करें:
    • फोटो का गलत उपयोग: पूजा घर में नकारात्मक या अशुभ व्यक्तियों के चित्र और मूर्तियाँ नहीं रखनी चाहिए। पूजा घर में केवल भगवान के ही चित्र या मूर्तियाँ रखें।
    • अव्यवस्था: पूजा घर को हमेशा साफ और व्यवस्थित रखें। पूजा घर में कोई भी अव्यवस्था, गंदगी, या बिना उपयोग की वस्तुएं न रखें, क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा का कारण बन सकती हैं।
    • ध्वनि प्रदूषण: पूजा घर के पास किसी भी प्रकार का शोर-शराबा न होने दें, ताकि ध्यान और पूजा में कोई विघ्न न आए।

पूजा घर के निर्माण के दौरान वास्तु टिप्स

  1. पूजा घर के दरवाजे और खिड़कियाँ:

    • पूजा घर का दरवाजा या द्वार हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए, ताकि वहां से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो सके।
    • पूजा घर में खिड़कियाँ हो सकती हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि खिड़कियाँ पूर्व या उत्तर दिशा में हों, जिससे ताजगी और शुद्ध वायु अंदर आ सके।
  2. दीवारों का रंग:

    • पूजा घर की दीवारों का रंग हल्का और शुभ होना चाहिए। सफेद, हल्का पीला, हल्का नीला, या हल्का गुलाबी रंग शुभ माने जाते हैं।
    • दीवारों पर शांति और सकारात्मकता का प्रतीक चित्र या मूर्तियाँ लगा सकते हैं, जैसे कि भगवान गणेश, लक्ष्मी, सूर्य या अन्य देवता।
  3. पूजा घर का फर्श:

    • पूजा घर का फर्श हमेशा साफ और मजबूत होना चाहिए। पूजा करते समय जमीन पर बैठने का स्थान साफ और शुद्ध होना चाहिए।
    • पूजा घर के फर्श पर लकड़ी का बांस या अन्य प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करना शुभ माना जाता है।
  4. ऊंचाई और स्थान:

    • पूजा घर का स्थान भूमि से थोड़ा ऊंचा होना चाहिए। इसका मतलब है कि पूजा घर को एक छोटी सी चौकी या अलमारी में रखें, ताकि यह भूमि से ऊपर रहे। यह स्थान सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।

पूजा घर में द्रव्य और फूलों का उपयोग

  1. पानी का स्थान: पूजा घर में पानी का एक छोटा बर्तन रखना अच्छा होता है। यह घर में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का प्रतीक होता है।

  2. फूल: ताजे फूल पूजा घर में रखने से न केवल वातावरण की शुद्धता बढ़ती है, बल्कि यह घर में समृद्धि और खुशहाली को भी आकर्षित करता है।

निष्कर्ष

पूजा घर का सही स्थान, दिशा, और डिज़ाइन वास्तु शास्त्र के अनुसार बेहद महत्वपूर्ण है। एक सही पूजा घर के द्वारा घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो परिवार के सभी सदस्यों के लिए सुख, शांति, और समृद्धि का कारण बनता है। पूजा घर को वास्तु के अनुसार सही दिशा और व्यवस्था में रखना आपके घर और परिवार के लिए लाभकारी हो सकता है।

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