वास्तु शास्त्र में प्रमुख दिशाओं का उल्लेख किया जाता है, जो भवन के निर्माण और उसकी ऊर्जा के संतुलन को प्रभावित करती हैं। इन प्रमुख दिशाओं में कुल आठ दिशा होती हैं, जो घर के विभिन्न हिस्सों के लिए महत्वपूर्ण होती हैं:
जल और आध्यात्मिक ऊर्जा:
स्वास्थ्य और सुख-शांति:
धन और समृद्धि:
पारिवारिक और आध्यात्मिक उन्नति:
वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पूर्व दिशा (South-East direction) को कहा जाता है। यह दिशा आग्नि तत्व (Fire Element) से जुड़ी होती है और इसे ऊर्जा, शक्ति, और प्रेरणा का प्रतीक माना जाता है। आग्नेय दिशा का विशेष महत्व है और इसे घर या कार्यालय में सही तरीके से उपयोग करना आवश्यक होता है, ताकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे।
आग्नि तत्व:
व्यवसायिक और धन संबंधी कार्य:
स्वास्थ्य और शक्ति:
वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पश्चिम दिशा (South-West direction) को कहा जाता है। यह दिशा पृथ्वी तत्व (Earth Element) से जुड़ी हुई मानी जाती है और इसे स्थिरता, सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। नैऋत्य दिशा का वास्तु में विशेष महत्व है क्योंकि यह घर या कार्यालय के आंतरिक संतुलन और ऊर्जा के प्रवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
पृथ्वी तत्व:
स्वास्थ्य और समृद्धि:
शक्ति और ऊर्जा:
वास्तु शास्त्र में उत्तर-पश्चिम दिशा (North-West direction) को कहा जाता है। यह दिशा वायु तत्व (Air Element) से जुड़ी हुई है और इसे संचार, मित्रता, और सामाजिक संबंधों का प्रतीक माना जाता है। वायव्य दिशा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिशा घर या कार्यालय में हवा, गति और संचार के प्रवाह से जुड़ी होती है, और इसका सही उपयोग मानसिक शांति और पारिवारिक संबंधों में सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है।
वायु तत्व:
संचार और मित्रता:
प्रेरणा और बदलाव:
वास्तु शास्त्र में केंद्र (Center) के रूप में मानी जाती है। इसे ब्रह्मस्थान भी कहा जाता है। यह स्थान घर या भवन का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र स्थान होता है, जो सभी तत्वों का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। ब्रह्म स्थान वास्तु शास्त्र में शक्ति, ऊर्जा और समृद्धि का स्रोत माना जाता है, और इसे घर या भवन के ऊर्जा केंद्र के रूप में देखा जाता है।
केंद्र का स्थान:
सभी तत्वों का संतुलन:
पवित्रता और शांति:
वास्तु शास्त्र में पूर्व दिशा (East direction) को कहा जाता है। इसे केशव स्थान भी कहा जाता है और यह दिशा अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। पूर्व दिशा का संबंध सूर्य (Sun) से है, जो जीवन और ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। इस दिशा को सकारात्मक ऊर्जा, वृद्धि और समृद्धि के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
सूर्य का संबंध:
उत्थान और वृद्धि:
धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति:
वास्तु शास्त्र में उत्तर-पूर्व दिशा (North-East direction) को कहा जाता है। इसे ईशान (Ishan) दिशा भी कहा जाता है, और यह दिशा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। सोम का संबंध चंद्रमा (Moon) से है, जो मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। इस दिशा को घर या भवन में विशेष स्थान देने से सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
चंद्रमा का संबंध:
आध्यात्मिक उन्नति:
समृद्धि और सुख:
वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पूर्व दिशा (South-East direction) को कहा जाता है। इसे नैऋत्य (Nairitya) दिशा से भी जोड़कर देखा जाता है, लेकिन पारंपरिक रूप से पाताल का संबंध जल तत्व (Water Element) और अंधकार से होता है। इस दिशा का विशेष महत्व है और इसे सही ढंग से इस्तेमाल करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
जल तत्व:
सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि:
संतुलन और मानसिक शांति: