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वास्तु शास्त्र में प्रमुख दिशाओं का उल्लेख किया जाता है, जो भवन के निर्माण और उसकी ऊर्जा के संतुलन को प्रभावित करती हैं। इन प्रमुख दिशाओं में कुल आठ दिशा होती हैं, जो घर के विभिन्न हिस्सों के लिए महत्वपूर्ण होती हैं:

  1. ईशान (Northeast) – जल और आध्यात्मिक ऊर्जा से संबंधित।
  2. आग्नेय (Southeast) – अग्नि और ऊर्जा से संबंधित।
  3. नैऋत्य (Southwest) – पृथ्वी और स्थिरता से संबंधित।
  4. वायव्य (Northwest) – वायु और संचार से संबंधित।
  5. ब्रह्म (Center) – सभी तत्वों का संतुलन, शांतिपूर्ण वातावरण के लिए महत्वपूर्ण।
  6. केशव (East) – सूर्य और वृद्धि से संबंधित।
  7. सोम (West) – चंद्रमा और समृद्धि से संबंधित।
  8. पाताल (South) – गहराई और स्थिरता से संबंधित।

(1) ईशान दिशा (Ishaan Disha)

वास्तु शास्त्र में उत्तर-पूर्व दिशा (Northeast direction) के रूप में मानी जाती है। इसे ईशान कोण या ईशान स्थान भी कहा जाता है। यह दिशा अत्यधिक महत्वपूर्ण है और वास्तु शास्त्र में इसे विशेष रूप से आध्यात्मिकता, शांति और समृद्धि से जुड़ा हुआ माना जाता है।
ईशान दिशा का महत्व:
  1. जल और आध्यात्मिक ऊर्जा:

    • ईशान दिशा जल तत्व और आध्यात्मिक ऊर्जा से संबंधित होती है। यह दिशा मानसिक शांति, ताजगी और ध्यान के लिए आदर्श मानी जाती है।
    • इस दिशा का संबंध ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता) से भी जोड़ा जाता है और इसे सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है।
  2. स्वास्थ्य और सुख-शांति:

    • ईशान दिशा का घर में होना स्वास्थ्य और मानसिक शांति को बढ़ावा देता है। यह दिशा घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को सुनिश्चित करती है, जिससे परिवार के सभी सदस्य सुखी और स्वस्थ रहते हैं।
  3. धन और समृद्धि:

    • इस दिशा का सही उपयोग घर में धन, संपत्ति और समृद्धि को आकर्षित करता है। इसे घर के धन और तिजोरी (वित्तीय वस्त्र) के स्थान के रूप में उपयुक्त माना जाता है।
  4. पारिवारिक और आध्यात्मिक उन्नति:

    • ईशान दिशा का घर में होना परिवार में सामंजस्य और प्रेम को बढ़ावा देता है। यह दिशा ध्यान, साधना और धार्मिक कार्यों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

(2) आग्नेय दिशा (Agneya Disha)

वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पूर्व दिशा (South-East direction) को कहा जाता है। यह दिशा आग्नि तत्व (Fire Element) से जुड़ी होती है और इसे ऊर्जा, शक्ति, और प्रेरणा का प्रतीक माना जाता है। आग्नेय दिशा का विशेष महत्व है और इसे घर या कार्यालय में सही तरीके से उपयोग करना आवश्यक होता है, ताकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे।

आग्नेय दिशा का महत्व:
  1. आग्नि तत्व:

    • आग्नेय दिशा का संबंध आग्नि तत्व से है, जो ऊर्जा, शक्ति, और गतिशीलता का प्रतीक है। आग का तत्व जीवन में गति, उत्साह, और सफलता को बढ़ावा देता है।
    • यह दिशा उत्साह, प्रेरणा, और उन्नति के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
  2. व्यवसायिक और धन संबंधी कार्य:

    • आग्नेय दिशा में रसोई (किचन) का होना शुभ माना जाता है क्योंकि रसोई में अग्नि का उपयोग होता है, और यह घर में समृद्धि और सुख-शांति को बढ़ाती है।
    • व्यापारिक कार्य, संपत्ति, और वित्तीय मामलों से संबंधित चीजें भी इस दिशा में रखना लाभकारी मानी जाती हैं।
  3. स्वास्थ्य और शक्ति:

    • इस दिशा का प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति और बाहरी ऊर्जा को बढ़ाता है। यह दिशा घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनाकर पारिवारिक उन्नति में मदद करती है।

(3) नैऋत्य दिशा (Nairitya Disha)

वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पश्चिम दिशा (South-West direction) को कहा जाता है। यह दिशा पृथ्वी तत्व (Earth Element) से जुड़ी हुई मानी जाती है और इसे स्थिरता, सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। नैऋत्य दिशा का वास्तु में विशेष महत्व है क्योंकि यह घर या कार्यालय के आंतरिक संतुलन और ऊर्जा के प्रवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

नैऋत्य दिशा का महत्व:
  1. पृथ्वी तत्व:

    • नैऋत्य दिशा का संबंध पृथ्वी तत्व से है, जो स्थिरता, सुरक्षा और भौतिक संपत्ति से जुड़ा हुआ है। यह दिशा घर या कार्यस्थल में स्थिरता, समृद्धि और परिवार के लिए सुरक्षा प्रदान करती है।
  2. स्वास्थ्य और समृद्धि:

    • यह दिशा घर के लिए स्थिरता और सुरक्षा लाने में मदद करती है। इसके अलावा, यह परिवार के भौतिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए शुभ मानी जाती है। यह दिशा घर के अंदर समृद्धि और खुशहाली को बढ़ाती है।
  3. शक्ति और ऊर्जा:

    • नैऋत्य दिशा को शक्ति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, क्योंकि यह दिशा स्थिर और मजबूत होती है। यह घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को सुनिश्चित करती है और घर के मुखिया या परिवार के प्रमुख के लिए भी यह दिशा महत्वपूर्ण होती है।

(4) वायव्य दिशा (Vayavya Disha)

वास्तु शास्त्र में उत्तर-पश्चिम दिशा (North-West direction) को कहा जाता है। यह दिशा वायु तत्व (Air Element) से जुड़ी हुई है और इसे संचार, मित्रता, और सामाजिक संबंधों का प्रतीक माना जाता है। वायव्य दिशा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिशा घर या कार्यालय में हवा, गति और संचार के प्रवाह से जुड़ी होती है, और इसका सही उपयोग मानसिक शांति और पारिवारिक संबंधों में सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है।

वायव्य दिशा का महत्व:
  1. वायु तत्व:

    • वायव्य दिशा का संबंध वायु तत्व से है, जो गतिशीलता, परिवर्तन और संचार का प्रतीक है। यह दिशा घर में ताजगी, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करती है। यह दिशा मानसिक शांति और सामंजस्य को बढ़ावा देती है।
  2. संचार और मित्रता:

    • वायव्य दिशा में घर या कार्यस्थल के संचार क्षेत्र जैसे बैठक कक्ष, संवाद करने की जगह (लिविंग रूम या अध्ययन कक्ष) रखना शुभ माना जाता है। यह दिशा अच्छे मित्रता संबंधों, संवाद और सामाजिक कनेक्शन को बढ़ावा देती है।
  3. प्रेरणा और बदलाव:

    • वायु तत्व के कारण इस दिशा में गति, परिवर्तन और प्रेरणा का प्रभाव होता है। यह दिशा घर में सकारात्मक बदलाव, नई शुरुआत और तरक्की को बढ़ावा देती है।

(5) ब्रह्म दिशा (Brahma Disha)

वास्तु शास्त्र में केंद्र (Center) के रूप में मानी जाती है। इसे ब्रह्मस्थान भी कहा जाता है। यह स्थान घर या भवन का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र स्थान होता है, जो सभी तत्वों का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। ब्रह्म स्थान वास्तु शास्त्र में शक्ति, ऊर्जा और समृद्धि का स्रोत माना जाता है, और इसे घर या भवन के ऊर्जा केंद्र के रूप में देखा जाता है।

ब्रह्म दिशा का महत्व:
  1. केंद्र का स्थान:

    • ब्रह्म दिशा घर के केंद्र में स्थित होती है और इसे घर या भवन के जीवन शक्ति के रूप में देखा जाता है। यह स्थान घर के सभी अन्य स्थानों के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है और घर की समग्र ऊर्जा को सकारात्मक बनाए रखता है।
  2. सभी तत्वों का संतुलन:

    • ब्रह्म स्थान में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश सभी तत्वों का संतुलन होता है। यह स्थान घर या भवन में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को सुनिश्चित करता है और घर को शांति, सुख, और समृद्धि प्रदान करता है।
  3. पवित्रता और शांति:

    • ब्रह्म दिशा का उपयोग विशेष रूप से पूजा स्थान (Puja Room) या ध्यान कक्ष (Meditation Room) के लिए किया जाता है, क्योंकि यह ऊर्जा का केंद्र है। इससे घर में आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और पवित्रता बनी रहती है।

(6) केशव दिशा (Keshav Disha)

वास्तु शास्त्र में पूर्व दिशा (East direction) को कहा जाता है। इसे केशव स्थान भी कहा जाता है और यह दिशा अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। पूर्व दिशा का संबंध सूर्य (Sun) से है, जो जीवन और ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। इस दिशा को सकारात्मक ऊर्जा, वृद्धि और समृद्धि के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

केशव दिशा का महत्व:
  1. सूर्य का संबंध:

    • केशव दिशा का संबंध सूर्य से है, जो जीवन, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। सूर्य का ऊर्जा स्रोत होने के कारण, इस दिशा को प्रकाश और जीवनदायिनी माना जाता है। यह दिशा घर में प्राकृतिक प्रकाश और ऊर्जा को बढ़ाती है, जिससे घर में सकारात्मकता बनी रहती है।
  2. उत्थान और वृद्धि:

    • सूर्य के प्रभाव से इस दिशा का संबंध उत्थान, वृद्धि, और सफलता से होता है। यह दिशा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मदद करती है। इस दिशा में प्रकाश और ताजगी का प्रवेश घर के भीतर समृद्धि और खुशी लाता है।
  3. धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति:

    • केशव दिशा में सूर्य की उपस्थिति को लेकर धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति का महत्व है। इस दिशा में पूजा, ध्यान और अन्य धार्मिक कार्य करने से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है। सूर्य का प्रकाश जीवन में सकारात्मकता और मानसिक स्पष्टता लाता है।

(7) सोम दिशा (Som Disha)

वास्तु शास्त्र में उत्तर-पूर्व दिशा (North-East direction) को कहा जाता है। इसे ईशान (Ishan) दिशा भी कहा जाता है, और यह दिशा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। सोम का संबंध चंद्रमा (Moon) से है, जो मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। इस दिशा को घर या भवन में विशेष स्थान देने से सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

सोम दिशा का महत्व:
  1. चंद्रमा का संबंध:

    • सोम दिशा का संबंध चंद्रमा से है, जो मानसिक शांति, भावनाओं, और सकारात्मकता का प्रतीक होता है। चंद्रमा घर में शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखने, परिवार के बीच प्रेम और सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है। यह दिशा विशेष रूप से सकारात्मक ऊर्जा और भावनात्मक संतुलन को बढ़ावा देती है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति:

    • सोम दिशा को आध्यात्मिक उन्नति के लिए आदर्श माना जाता है। यहां ध्यान, साधना और पूजा करने से मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है। चंद्रमा की ऊर्जा घर में सकारात्मकता और शांति लाती है।
  3. समृद्धि और सुख:

    • सोम दिशा का सही उपयोग घर में समृद्धि, धन और सुख लाने में मदद करता है। यह दिशा घर में ताजगी और ऊर्जा का प्रवाह करती है, जो परिवार में खुशहाली और समृद्धि को बढ़ाती है।

(8) पाताल दिशा (Paatal Disha)

वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पूर्व दिशा (South-East direction) को कहा जाता है। इसे नैऋत्य (Nairitya) दिशा से भी जोड़कर देखा जाता है, लेकिन पारंपरिक रूप से पाताल का संबंध जल तत्व (Water Element) और अंधकार से होता है। इस दिशा का विशेष महत्व है और इसे सही ढंग से इस्तेमाल करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।

पाताल दिशा का महत्व:
  1. जल तत्व:

    • पाताल दिशा का संबंध जल तत्व से होता है, जो जीवन और समृद्धि का प्रतीक है। जल का प्रवाह और सही दिशा में उपस्थिति घर के लिए शांति और खुशहाली लाती है। इस दिशा में पानी के स्रोत जैसे फव्वारा या जल की बाल्टी रखना शुभ माना जाता है।
  2. सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि:

    • पाताल दिशा में जल तत्व के माध्यम से घर में धन, समृद्धि और सुख का प्रवाह हो सकता है। इस दिशा में यदि सही तरीके से जल की मौजूदगी हो तो यह घर की समृद्धि को बढ़ाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  3. संतुलन और मानसिक शांति:

    • पाताल दिशा का सही उपयोग मानसिक शांति और संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। इस दिशा में जल तत्व से संबंधित वस्तुएं रखने से शांति का वातावरण बनता है और परिवार में सामंजस्य बना रहता है।
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